ये पिंकी कौन है, जो पैसे वालों की है
ये पिंकी कौन है, जो पैसे वालों की हैमुंबई की ना दिल्ली वालों की, पिंकी है पैसे वालों की। धिंचक-धिंचक कमर हिला हिलाकर यह बात बता रही हैं प्रियंका चोपड़ा। सुन-सुन कर इस सवाल ने दिमाग का दही कर दिया है कि यह पिंकी है तो कौन है! रहती कहां है! सोचता हूं, काश! मिल जाती तो पूछ लेता-क्योंर जी तुम हम बिन पैसे वालों की क्यों नहीं हो? तुम आखिर चीज क्या हो, इतना तो बता दो। मसलन-खाली हाथ लाला की दुकान पर खड़ा बच्चाो जार में बंद जिस टाफी को घूर रहा है, कहीं तुम वही तो नहीं हो ? देशी के लिए कतार में खड़े होकर जिस मुझ जैसा गरीब जिस अंग्रेजी की बोतल को निहारता है, वह तो नहीं हो। टैंपों में ठसा सा बैठा नौजवान जिस नजर से आगे भागती ऑडी को निहारता है, वह हसरत हो क्याह? कभी रोटी के संग गरीबी का सबसे माकूल दोस्तआ रहा प्यानज न खरीद पाने की बेबसी हो क्या। चाइनीच मोबाइल के बाद सीधे एप्प ल आर्इफोन का ख्वारहिश हो क्याी। धान के खेत में डालने के लिए यूरिया या डीएपी हो क्याा? यह भी नहीं। तब तो तुम पिंकी न होकर जैसे हिंदुस्ताेन की सियासत हो गई हो। चुनाव किसका? पैसे वालों का। तमाम अयोग्यतताओं के बावजूद चुनावी टिकट मिल जाना तय किसका? पैसे वालों का। संसद में किसके लिए सवाल पूछा जाना? जिसके पास पैसा। वैसे पिंकी तुम जहां कहीं भी हो, मैं तुम्हें पूरी साफगोई के साथ एक बात बता देना चाहता हूं, तुम में यूनीक कुछ भी नहीं है। इस बेमुरव्वलत फानी दुनिया में बिना पैसे के कुछ भी नहीं। फिर इतना इतराने की क्याभ जरूरत है। गरीब का दिल जलाने की क्या जरूरत है। हां, एक चीज जरूर बिना पैसे के मिल जाएगा, जब चाहो तो ले जाना-गरीब की भूख, गरीब के जज्बाफत और गरीब के वोट।
मुंबई की ना दिल्ली वालों की, पिंकी है पैसे वालों की। धिंचक-धिंचक कमर हिला हिलाकर यह बात बता रही हैं प्रियंका चोपड़ा। सुन-सुन कर इस सवाल ने दिमाग का दही कर दिया है कि यह पिंकी है तो कौन है! रहती कहां है! सोचता हूं, काश! मिल जाती तो पूछ लेता-क्यों जी तुम हम बिन पैसे वालों की क्यों नहीं हो? तुम आखिर चीज क्या हो, इतना तो बता दो। मसलन-खाली हाथ लाला की दुकान पर खड़ा बच्चा जार में बंद जिस टाफी को घूर रहा है, कहीं तुम वही तो नहीं हो ? देशी के लिए कतार में खड़े होकर मुझ जैसा गरीब जिस अंग्रेजी की बोतल को निहारता है, वह तो नहीं हो। टैंपों में ठसा सा बैठा नौजवान जिस नजर से आगे भागती ऑडी को निहारता है, वह हसरत हो क्या? कभी रोटी के संग गरीबी का सबसे माकूल दोस्त रहा प्याज न खरीद पाने की बेबसी हो क्या। चाइनीज मोबाइल के बाद सीधे एप्पल आइफोन का ख्वाहिश हो? धान के खेत में डालने के लिए यूरिया या डीएपी हो ? यह भी नहीं। तब तो तुम पिंकी न होकर जैसे हिंदुस्तान की सियासत हो गई हो। चुनाव किसका? पैसे वालों का। तमाम अयोग्यताओं के बावजूद चुनावी टिकट मिल जाना तय किसका? पैसे वालों का। संसद में किसके लिए सवाल पूछा जाना? जिसके पास पैसा। वैसे पिंकी तुम जहां कहीं भी हो, मैं तुम्हें पूरी साफगोई के साथ एक बात बता देना चाहता हूं, तुम में यूनीक कुछ भी नहीं है। इस बेमुरव्वत फानी दुनिया में बिना पैसे के कुछ भी नहीं। फिर इतना इतरा कर बताने की क्या जरूरत है। गरीब का दिल जलाने की क्या जरूरत है। हां, तीन चीज जरूर बिना पैसे के मिल जाएगी, जब चाहो तो ले जाना-गरीब की भूख, गरीब के जज्बात और गरीब का वोट।
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