एक सवाल है श्री शरद यादव जी से। जदयू प्रमुख शरद यादव जी से। ये डिब्बा क्या होता है शरद जी? जिसका जिक्र आपने शनिवार को लोकसभा में एेतिहासिक बहस के दौरान किया। जिस पर माननीय सांसदों ने ठहाकों के साथ निर्धारित वक्त से भी ज्यादा आपको बोलने दिया। जबकि देशहित के ज्यादातर गंभीर मसलों पर बहस के दौरान वे शोर मचाते हुए उठ खड़े होते हैं। संसद की कार्यवाही का बहिष्कार तक कर जाते हैं। लेकिन वे अपने लिए निर्धारित समय भी आपके नाम करने को तैयार थे। वैसे, आपने जिसे डिब्बा बताया, कहीं वह ऐसी कोई संस्था तो नहीं, जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। अगर मेरा अंदाजा वाकई सही है तो समझ में नहीं आता कि आपके बयान को देश के लिए सौभाग्य कहूं या फिर दुर्भाग्य। ओमपुरी तो अन्ना के मंच पर नशे में बहक गए। लेकिन जहां तक आप दावा करते हैं कि व्यसनों से दूर हैं। फिर आप कैसे बहक गए ? लोकतंत्र के आंगन में बैठकर आप कैसे उसी के चौथे स्तंभ को कोस गए। अगर जनता की आवाज को बुलंद करना, डिब्बागिरी है तो यह नाजायज कहां से है? आप ही क्यों, आपके पुराने मित्र लालू प्रसाद जी भी बददुआ देते नजर आए कि रिपोर्टर रिपोर्टिंग करना भूल जाएंगे। मीठा-मीठा हप्प और कड़वा-कड़वा थू। आपके मन की बात न करें तो डिब्बा है और आपके मन की बात करे तो मीडिया? यह कौन सा मानदंड है ? खुद को किसानों-मजदूरों का मसीहा कहने वाले शरद जी आपकी शिकायत जायज है। आपने लोकसभा को बताया कि चारों तरफ बाढ़ से तबाही मची हुई है। मीडिया उसे कवरेज नहीं दे रहा है। लेकिन एक बात अब आप भी बता दीजिए। आपने अपने संसदीय क्षेत्र मधेपुरा (बिहार) के किन-किन बाढ प्रभावित क्षेत्रों में घुटने-कमरभर पानी में जाकर किसानों-गरीबों का हाल जाना ? राहत और बचाव कार्य के लिए आपने अपनी सांसद निधि से कितने लाख-करोड़ की धनराशि आवंटित की। आप कहते हैं आठ-नौ साल से कहीं नहीं जाते। मत जाइए। आपने तो अपना वक्त काफी हद तक गुजार लिया। सचिन पायलट और जितिन प्रसाद जैसे होनहारों को किसी बहस-मुबाहिसें में जाने से क्यों रोक रहे हैं। क्यों उनकी टांग खींच रहे है। आपने अपने वक्तव्य में कौन सी ऐसी नजीर पेश की, जिसे संसद में बैठे युवा तुर्क आत्मसात करते। मेरी तो समझ में यही आ रहा है कि आपने लोकसभा का कीमती वक्त अपनी हंसी-ठिठोली में बरबाद किया। किरण बेदी ने अन्ना के मंच पर ओढनी ओढ ली तो आपको नागवार गुजरा। आपने पगडी उछालना अपनी आदत बताकर एक तरह से धमकाने का काम किया। यह कौन सी संतई है। आप का संसदीय क्षेत्र जिस सूबे में आता है, वहां शादी-विवाह और पार्टियों में न जाने कितनी नर्तकियां ओढनी ओढकर नाचती हैं, आपको उससे कोई गुरेज क्यों नहीं हुआ। क्या वे औरत नहीं होतीं। सालों से चली आ रही शायद इन्हीं मनमानियों की लंबी होती फेहरिस्त को देखकर अन्ना हजारे जैसे बुजुर्ग को आत्मघाती हथियार अपनाना पड़ा। बारह दिनों तक भूखे रहना पड़ा। अगर मनमानियां नहीं थमीं तो ऐसे कई मौके देखने पडेंगे संसद को। आए दिन कोई न कोई अन्ना अनशन पर बैठा होगा। आप उसे मनाने के लिए विनती करते नजर आएंगे।
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