फिर वही हुआ, जो अक्सर होता है। सियासी तूफान खड़ा करने की रणनीति से गांव भट्टा पारसौल गए कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की बचकानी जुबां फिसल गई। साहब ने कह दिया–यहां के हालात देखकर मैं खुद को भारतीय कहलाने पर शर्मिंदगी महसूस कर रहा हूं। कितना गजब का इत्तेफाक है राहुल जी, आप अपनी सरकार में हुए महा घोटालों पर तनिक भी शर्मिंदा नहीं होते। लेकिन भट्टा पारसौल की घटना पर आपको शर्मिंदगी है। अब जनता जनार्दन आप ही बताइए, आपकी क्या राय है। राहुल जी के इस बयान पर कितना गर्व महसूस किया जाना चाहिए। आप भले गर्व महसूस करें, लेकिन मैं तो सिर्फ इतना कहूंगा कि राहुल जी, आपके बयान पर मैं शर्मिंदा हूं। आप पर शर्मिंदा हूं। आपके कांग्रेस शासित प्रदेश महाराष्ट्र के विदर्भ में कर्ज और सूदखोरों से आजिज आकर 300 से ज्यादा किसानों ने खुदकुशी कर ली। लेकिन आपने कभी शर्मिंदगी महसूस नहीं की। आपकी पार्टी के शासन में इस सूबे के एक मुख्यमंत्री ने बुलढाना जिले के एक ऐसे सूदखोर को बचाने का आदेश जारी करता है, जिसकी बदौलत से एक किसान परिवार तबाह हो गया। रही बात भट़्टा पारसौल की तो, वहां के हालात बिगड़े कैसे। इसी भट्टा और पारसौल गांव के 80 फीसदी से ज्यादा किसान भूमि अधिग्रहण के एवज में मुआवजा ले चुके हैं। बाकी बचे किसानों को उकसाया किसने। उत्तर प्रदेश सरकार क्या करती, परिवहन निगम के बंधक कर्मचारियों की बलि चढ़ जाने देती। आपने यह कैसे सोचा कि वे किसान हो सकते हैं, जो पुलिस पर अंधाधुंध गोली चलाते हैं और दो पुलिस कर्मी अपनी ड्यूटी को अंजाम देते हुए मार दिए जाते हैं। कभी सुना है आपने किसी आंदोलन में कलेक्टर को गोली लगते। जिन्होंने गोलियां बरसाईं, उनके अगुआ के खिलाफ 23 मुकदमों की चार्जशीट है। आपने उन पुंलिस कर्मियों के घर जाकर सांत्वना देने में क्यों शर्मिंदगी महसूस की, जो अपनी ड्यूटी को अंजाम देते हुए मारे गए। क्या वे इस देश के नागरिक नहीं। दरअसल राहुल जी, दोष आपका नहीं। संगत का है। पूरे कुएं में ही भांग पडी हुई है। आपके साथ साए की तरह चलने वाले दिग्विजय सिंह को ही ले लिजिए। कुछ दिन पहले खूंखार आतंकवादी ओसामा बिन लादेन के मारे जाने पर तकरीबन अफसोस के अंदाज में उन्होंने ओसामाजी के सम्मान से नवाजा। यह वही ओसामा था, जिसके संगठन अलकायदा से उन आतंकी संगठनों की साठगांठ है, जो कश्मीर के लिए खतरा बने हुए हैं। इन्हीं आतंकी संगठनों में एक हिजबुल मुजाहिदीन की एबटाबाद की वजीरिस्तान हवेली है, जिसमें ओसामा ने पनाह ले रखी थी। राहुल जी, अब इससे ज्यादा क्या कहूं—‘जो भरा नहीं है भावों से जिसमें बहती रसधार नहीं। वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।—बाकी अब देश की जनता जाने।
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