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बड़ी मुश्किल है भइया। एक तरफ खाई तो दूसरी तरफ कुआं के बीच फंसी पड़ी है अपनी केंद्र वाली सरकार। प्याज के छिलके की तरह उधड़ रहा भ्रष्टाचार दम दे रहा है तो दूसरी तरह गांधी बाबा के पहरुए। लेकिन चाहे जो कुछ भी कहो, अपने प्रधानमंत्रीजी की हिम्मत को तो दाद देनी ही पड़ेगी। बाइपास कराने के बाद भी
इनका ब्लड प्रेशर नहीं बढ़ता। टस से मस नहीं होने वाले। इस आदत के फायदे भी कई हैं। न तो खाई में गिरेंगे ना ही कुएं में। इनकी हिम्मत देख मैं उधेड़बुन में हूं। पानी पी-पी के सोचे जा रहा हूं, अगर मै प्रधानमंत्री होता तो क्या करता ? अभी-अभी नतीजे पर पहुंचा हूं कि प्रधानमंत्री की कुर्सी चचा हजारे को सौंप देता। कह देता-ई लो कुर्सी, तुमही संभालों देश का राजपाट। जिस तरह फिल्म नायक में अमीरशपुरी ने अनिल कपूर को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौप दी थी, उसी तरह सौंप देता। कहता मिटाओ भ्रष्टाचार, देखता हूं कैसे मिटाते हो।जन लोकपाल, लोकपाल बनाओ, चाहे दिग्पाल। भ्रष्टाचार मिटाकर दिखाओ। चाहो तो अपनी
कोई पार्टी बना लो, चुनाव के मैदान में उतर जाओ और अपना जौहर दिखाओ। लेकिन इतना जरूर बता देना चाहता हूं कि इस रेस में ए राजा कोई अकेले नहीं है, राजाओं की फौज खड़ी है। क्या मनरेगा का फर्जी जॉब कार्ड मैं ही बनाता हूं। इंदिरा आवास का फर्जी आवंटन मैं करता हूं। मरे लोगों के नाम पर वृद्धा पेंशन मैं उठता हूं। साध्वा होते हुए भी विधवा बनकर पेंशन लेने मैं ही जाता हूं। कागज पर बोरिंग
भी क्या मैं ही करवाता हूं। देशभर में अपने चहेतों को टेंडर क्या मैं ही दिलवाता हूं। क्या मैं ही एपीएल में होते हुए भी बीपीएल का राशन उठाता हूं। मन तो काम धेले भर का नहीं करने का होता, फिर भी खैनी रगड़ते हुए मोटा इंक्रीमेंट और 70-80 दिन का बोनस मैं ही ले जाना चाहता हूं। रातोंरात बढ़ाने के लिए लौकी में इंजेक्शन मैं ही लगाता हूं क्या, दूध में पानी भी मैं ही मिलाता हूं क्या ?
हजारे बापू, मैं तो चुनाव से पहले पर्चा दाखिला करने के साथ ही अपनी संपत्ति घोषित कर दी थी। जरा यह तो बताइए कि आपके अनशन के समर्थन में अनशन करने वाले कितने लोगों ने अपनी संपत्ति घोषित कर रखी है। कितनों ने हाथ में गंगाजल या गीता की अहद लेकर यह एलान किया है कि वह कभी भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं होंगे। कितनों ने सरकारी नकेल के बिना आयकर के दफ्तर में जाकर स्वेच्छा से कहा है कि ले लो भइया हमरा भी आयकर ले लो, इतना हो गया है। किसी रिक्शे वाले को दस की जगह पर आठ रुपये किराया देना क्या भ्रष्टाचार नहीं है? काम-धंधा छोड़कर दिनभर जगह-जगह अनशन पर बैठने वालों ने, क्या यह नहीं सोचा कि दफ्तर से बिना वजह गोल होना भी भ्रष्टाचार के दायरे में ही आता है। वैसे, यह एनजीओ वाले आप पर इतने मेरबान क्यों हैं? आपको प्लेन से दिल्ली से पुणे तक भेजने का खर्चा किसने उठाया ? निरीह मजदूरों के हाथ काट देने वाले माओवादियों के हिमायती तथाकथित बुद्धिजीवियों से आपकी दोस्ती का सबब क्या है? आपके सुर खिलाफ बिगुल फूंकने वाले बाबा रामदेव को अचानक आपने क्या घुट्टी पिला दिया कि वह मिसिरी घोलने लगे। सोचिए जरा, आपके समर्थन में अगर देशभर में एक लाख लोगों ने भी अनशन किया होगा तो काम करने के आठ लाख घंटे निट्ठला चिंतन में बरबाद करने का गुनाहगार कौन है ? चलिए मान लिया, इन सब सवालों के जवाब आपके पास है। मगर एक बात बताइए कि अगर आप जिस जन लोकपाल के लिए हाय-तौबा मचाए हुए हैं, अगर उसकी कुर्सी पर बैठे शख्स की आत्मा में अगर राजा का जिन्न बैठ गया तो आप क्या
कीजिएगा ?
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