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लाइलाज बीमारी के शिकार

सर-ए-राह
सर-ए-राह
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शायद ये लोग किसी लाइलाज बीमारी के शिकार हैं। बिना समझे बकबक करने की बीमारी के शिकार। कभी अपने ही देश में, अपने ही लोगों को MIGRANT कह कर खानाबदोश या मुहाजिर जैसा बना देते हैं। कभी जांबाजों की शहादत पर सवाल उठा देते हैं। कभी धर्म विशेष को कठघरे में खड़ा कर  देते हैं। जान फंसती नजर आती है तो खंडन करने में भी विलंब नहीं करते।
बात 26/11 से शुरू करते हैं। मुंबई  पर पाकिस्‍तानी आतंकियों का धावा पूरी दुनिया देखती है। मुंबई एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे की शहादत की वजह पूरी दुनिया जान जाती है। लेकिन तत्‍कालीन केंद्रीय अल्‍पसंख्‍यक मंत्री अब्‍दुल रहमान अंतुले को एक अलग कोण यानी एंगल नजर आने लगता है। करकरे की शहादत के लिए उन्‍हें पाकिस्‍तानी आतंकी नहीं, मालेगांव विस्‍फोट की जांच का कोण नजर आने लगता है। इस बयान से देश के करोड़ों लोगों के दिलों पर मिले जख्‍म जैसे-जैसे दबते हैं कि दो साल बाद फिर दिग्‍गी राजा का दिमागी कीड़ा कुलबुलाने लगता है। यह दीमागी कीड़ा जख्‍मों को फिर हरा कर देता है। वह करकरे की शहादत को हिंदू आतंकवाद के चश्‍मे से देखने लगते हैं। पहले करकरे से बात होने के सुबूत का दावा करते हैं। फिर मुकर जाते हैं।
    दिल्‍ली की हर समस्‍या के लिए कुछ लोगों को गाहेबगाहे हम जैसों की भीड़ जिम्‍मेदार नजर आने लगती है जो रोजी-रोटी के लिए अपना सूबा-अपना जिला और अपना गांव छोड़कर यहां आ जाते हैं। आरोप लगाने वाले, हम सबों को कोसने वाले यह भूल जाते हैं कि दिल्‍ली और मुंबई में खड़ी गगनचुंबी अट्टालिकाओं की हर ईंट के साथ तो सीमेंट हमारे ही पसीने से चिपकी होती है। वोट मांगने का वक्‍त आ जाए तो हाथ में कटोरा लिए हमीं लोगों के सामने खड़े नजर आते हैं। मुंबई में मनसे प्रमुख राज ठाकरे पूरबियों को आए दिन जलील करते-करवाते रहते हैं। लेकिन महाराष्‍ट्र की सरकार राज के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर गुजर गए सांप की लकीर पर लाठी पीटती रहती है।
    कश्‍मीर पर मीरवाइज उमर फारूक को किसी बयान (जो अप्रत्‍याशित नहीं होता) के लिए हम पानी पी-पीकर कोसते हैं। मीरवाइज देश के विभिन्‍न हिस्‍से में थपडि़या तक दिए जाते हैं। लेकिन जम्‍मू-कश्‍मीर के मुख्‍यमंत्री उमर अब्‍दुल्‍ला कह देते हैं कि कश्मीर एक समझौते के तहत भारत का अंग बना था, उसका विलय नहीं हुआ था तो उन्‍हें दुलरुआ की तरह गोद में बैठाए लोग निंदा करने की बजाय लीपापोती में जुट जाते हैं। रही सही कसर  कांग्रेस के युवराज पूरी कर देते हैं। दीगर मुल्‍क वालों से भी यहां तक कह देते हैं कि हिंदुस्‍तान को इससे बड़ा खतरा चरमपंथी हिंदू संगठनों के बढ़ने से है। ये संगठन मुस्लिम समुदाय के साथ तनाव और राजनीतिक टकराव पैदा कर सकते हैं। काबिलेगौर कि ऐसी ज्‍यादातर बहकी-बहकी बातें उन लोगों की जुबानी होती है, जो देश की बागडोर संभालने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
    दरअसल दोष इन नेताओं का नहीं, इनमें भारतीयता और भारतीय संस्‍कृति का अभाव ही इस तरह की बातें उगलवाता है। हमारे भारतीय संस्‍कार ‘सत्यम ब्रुयात प्रियम ब्रुयात, न ब्रुयात सत्यम अप्रियम’ यानी सत्‍य बोले प्रिय बोलो, लेकिन ऐसा सत्‍य ना बोलो जो अप्रिय हो–की हिमायत करते हैं। ऐसे में जब देशहित की बात आती है तो बडे से बडा अघ निगलना भी गलत नहीं होता। लेकिन हमारे इन तथाकथित रहनुमाओं को इस बात की तनिक भी परवाह  नहीं कि करकरे साहब की शहादत पर सवाल और लश्‍कर की हिमायत कर हमारे नापाक इरादे वाले पड़ोसी की ही मदद कर रहे हैं। देश का  भला नहीं कर रहे हैं। हो सकता है कि इस जमाने के हरिश्‍चंद्रों को यह बात गलत लगे कि सत्‍य पर परदादारी क्‍यों, तो मेरा सवाल है कि क्‍या किसी अदालत ने यह अभी तक साबित किया है कि फलां हिंदू संगठन के किसी कृत्‍य से देश का अहित हुआ है। मेरी समझ से शायद नहीं।फिर ऐसे बयानों का मतलब और उसकी सजा—–?
इस ब्‍लाग के साथ मेरा एक पुराना ब्‍लॉग मौजू लग रहा है, जिसका लिंक नीचे है–दर्द और भी हैं राजा साहब—
https://www.jagran.com/blogs/madanmohansingh/2010/02/05/%e0%a4%a6%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%a6-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%ad%e0%a5%80-%e0%a4%b9%e0%a5%88%e0%a4%82-%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%9c%e0%a4%be-%e0%a4%b8%e0%a4%be%e0%a4%b9%e0%a4%ac/
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