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हमरे राहुल भइया भी न…गजबे हैं!

सर-ए-राह
सर-ए-राह
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हमरे राहुल भइया का भी जवाब नहीं हैं। गज्‍ज्‍ज्‍जब। सुर्खियों में कैसे बने रहा जाता है, कोई उनसे सीखे। जहां भी जाते हैं रहस्‍य और रोमांच पैदा कर देते हैं। जिसे छू देते हैं, उसके भाग खुल जाते हैं। बिल्‍कुल पारस पत्‍थर की तरह। अब समोसा को ही लीजिए। अपने हिंदुस्‍तान में न जाने कितने करोड़ समोसा लोग रोज पूरी खामोशी के साथ हजम कर जाते हैं। लेकिन जिस दिन राहुल भइया लालगंज, डलमऊ या जगदीशपुर में सड़क के किनारे किसी दुकान पर समोसे को छू लेते हैं, हलक से नीचे उतरने से पहले समोसा ब्रेकिंग न्‍यूज बन जाता है। न्‍यूज चैनलों पर छा जाता है। अखबारों की सुर्खियों में शुमार हो जाता है–राहुल जी ने समोसा खाया।राहुल जी ने समोसा खाया। राहुल जी ने समोसा खाया। वह कृपालु भी कम नहीं। कभी अंग्रेजी बाबू मिलीबैंड के साथ पधार कर किसी गांव सिमरा में किसी शिवकुमारी की कुटिया को कृतार्थ कर देते है, बैठकर ख्‍ाटिया-बिछौना को धन्‍य कर देते हैं। पढ़-सुनकर लगता है, जैसे रामलीला में सबरी का प्रसंग चल रहा हो। कभी बिल गेट्स जैसे धनपति की आंखों से रायबरेली-अमेठी के गंवई लोगों को सिलीकॉन वैली घुमाने का सप‍ना दिखाते हैं। रह-रह कर बहनजी की उत्‍तर प्रदेश पुलिस के सुरक्षा घेरे को अंगूठा दिखाने वाले राहुल भइया, अचानक अलीगढ़ में आंदोलित किसानों से मिलने पहुंच जाते हैं। मगर चोरी-चोरी, चुपके-चुपके। चोरी-चुपके के पीछे का रहस्‍य तो राहुल भैया ही बताएंगे कि इस तरह कोई सस्‍पेंस क्रिएट करना था या फिर सिक्‍योरिटी कंसर्न। लेकिन उन्‍हें तो छा जाना था और छा गए सुर्खियों में। हजारों-लाखों लोग मुंबई की लोकल या फिर दिल्‍ली की मेट्रो में रोजै सफर करते हैं। तरह-तरह की धक्‍काधुक्‍की झेलते हैं। लेकिन न तो कैमरे चमकते है और ना ही खबर बनतीं। लेकिन जब राहुल भइया इनमें सफर करते हैं तो सुर्खियां उमड़ने लगती हैं। एक सवाल के चक्‍कर में हर बार घनचक्‍कर बना रहता हूं कि जब सब कुछ गोपनीय ही होता है, तो कुछ ही मिनटों में ही खबरों की बाढ़ कैसे आ जाती है। बुंदेलखंड के लिए पैकेज की मांग कर कर उत्‍तर प्रदेश सरकार थक जाती है। लेकिन जिस दिन राहुल भइया बुंदेलखंड के लिए पैकेज की मांग उठाते हैं, अपने अर्थशास्‍त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अचानक उदार हो जाते हैं। पैकेज की घोषणा भी हो जाती है। यह तो राहुल भइया के करिश्‍माई व्‍यक्तित्‍व का ही कमाल कहा जाएगा।

बिहार में चुनाव हो रहे हों और राहुल भइया के मन में पुरबियों के लिए अचानक दर्द न उमडे़ तो फिर प्‍यार ही कैसा। अक्‍सर चार्टर्ड विमान से चलने वाले राहुल भइया 18 अक्‍टूबर को गोरखपुर में मुंबई जाने वाली एक ट्रेन में बैठ गए। ताज्‍जुब यह कि एसी नहीं, स्‍लीपर कोच में। यह दीगर बात थी कि दस-बारह लोगों का अमला साथ चल रहा था। सुनने में आया है कि पूर्वांचल और बिहार के लोगों का दर्द समझने के लिए उन्‍होंने आम आदमी की तरह सफ‍र किया। लेकिन यह भी बताया जा रहा है कि उनका और उनके साथ चलने वाले लोगों का का रिजर्वेशन रेलवे मुख्‍यालय से कन्‍फर्म कराया गया था। कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि राहुल भइया कुशीनगर गए थे अपना भाग्‍य पढ़वाने। वहां कोई कामाख्‍या प्रकाश जी है, रावण्‍ा संहिता के प्रकांड विद्वान हैं। यह मामला हाइप न पकड़ ले, पर्दा डालने के लिए राहुल भइया ट्रेन में बैठ गए। वजह-मंशा चाहे जो रही हो, राहुल भइया एक बार फिर सुर्खियों में। वैसे राहुल भइया के इस सफर को लेकर जो एक बात मेरे मन में कुलबुला रही है, वह य‍ह कि जब दीपावली और छठ करीब सरक रहे हों तो गोरखपुर से मुंबई जाने वाली ट्रेन के सफर में दुखदर्द का अहसास कैसा, वह भी स्‍पेशल ट्रेन, जिसके बारे में मुसाफिर भाई जानते भी कम हैं। फांका ही जाती है। दुख-दर्द जानना ही था तो राहुल भइया को बांबे वीटी से गोरखपुर के लिए सफर करना चाहिए था। अब भी मौका है। एक-दो दिन बाद दिल्‍ली से बिहार जाने वाली किसी भी ट्रेन में राहुल भइया अगर चढ़ने की कोशिश भी कर गए तो यकीन आ जाएगा कि वह वाकई दु:ख दर्द समझने की चाह रखते हैं। भीड़ का आलम यह होता है कि क्या पता कब प्‍लेटफार्म पर भगदड़ मच जाए और दो-चार-दस लोगों को सफेद कपड़े लिपटना पड़े, कोई नहीं जानता। जनरल तो जनरल, स्‍लीपर बोगी में भी लात रखने की जगह नहीं होती। वैसे मैं भी कुछ कम भूलक्‍कड़ नहीं। इतना सब लिख गया, लेकिन अपने राहुल भइया का पूरा परिचय तो कराया ही नहीं। जैसे पूरी रामायण हो गई और फिर भी सवाल खड़ा था-रामजी कौन हैं। दरअसल मैं अपने उस राहुल भइया की बात कर रहा था जो कांग्रेस के युवराज है। भाग्‍य बचवाकर आएं हैं तो लगता है कि शुभ मुहूर्त दिखवाने गए थे। अचानक यहां-वहां पहुंचकर सबको चौका देने वाले हमरे राहुल भइया जल्‍दी ही किसी दिन प्रधानमंत्री की कुर्सी पर पहुंचकर देश को चौकाने वाले हैं शायद!! मेरी भी शुभकामना उनके साथ।।जय हो।।

जाहिर है इतना सब पढ़ने में वक्‍त और दिमाग काफी खर्च हुआ होगा। इसलिए अब एक दिमागी कसरत कीजिए। गणित का एक सवाल हल करिए ना जरा—- -मान लीजिए कि राहुल भइया, ब्रितानी विदेश सचिव मिलीबैंड और अमेरिकी धनकुबेर बिलगेट्स अचानक जगदीशपुर में सड़क के किनारे एक दुकान पर समोसा और जलेबी खाने बैठ गए -दुकानदार ने बिल बनाया 75 रुपये का -तीनों ने अपनी अंटी से 25-25 रुपये निकाल कर दुकानदार के छोरे को थमा दिए -75 रुपये लेकर छोरा गया दुकानदार के पास -दुकानदार ने सोचा, इतने हाईप्रोफाइल लोग आए है, चलो कुछ डिस्‍काउंट दे देते हैं। उसने पांच रुपये लौटा दिए -पांच रुपये में से छोरे ने दो रुपये अपनी जेब में समेट दिए। एक-एक रुपये तीनों को वापस कर दिया -इस तरह हरेक के हिस्‍से में बिल आया 24-24 रुपये का -अब 24+24+24=72 रुपये हुए। इस 72 में जिस दो रुपये को वेटर ने रख लिए थे, उसको भी जोड़ दें तो हो जाते हैं=74 रुपये -फिर एक रुपया कहां गया ?

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