काश! मेरा सपना सच हो जाता
जिधर नजर डालो, ढेर सारे ताड़ के पेड़। कहीं-कहीं नारियल और सुपारी भी। दूर नजर आतीं पर्वत शृंखलाएं। ज्यादातर लोग सांवले। पता नहीं कौन सा प्रांत, कौन सा गांव था वह। लेकिन लग रहा था पश्चिम बंगाल और झारखंड की सीमा से लगा कोई इलाका, जहां आए दिन माओवादी स्कूलों को जुगाड़ बम ( आईईडी ) लगाकर उड़ा देते हैं। गांव के दो विपरीत छोर पर दो शिक्षण्ा संस्थाएं। एक में गुरुदेव रामकृष्ण परमहंस की बड़ी तस्वीर। सामने खड़े शख्स झक्क सफेद धोती में खुद को समेटे हुए हैं। सिर के खिचड़ी बाल। दाढ़ी का भी कुछ वैसा ही हाल। लोग उन्हें स्वामी जी कह कर संबोधित कर रहे थे। प्रार्थना शुरू होती है–या कुंदेंदु तुषार हार धवला—। फिर संक्षिप्त संबोधन उन शख्स का—बच्चों मैंने विद्यालय खोला है सच्चे हिंदू गढ़ने के लिए। हीन गुणान् तज्यंति इति हिंदू। सच्चा हिंदू वही होता है, जिसमें कोई अवगुण न हो। इसके साथ क्लास की शुरूआत। छात्र और शिक्षक पठन-पाठन में व्यस्त। दो-चार लोगों की मंडली के साथ स्वामी जी बढ़ लेते हैं गांव के दूसरे छोर पर। सामने आता है एक और विद्यालय। छात्र से लेकर शिक्षक तक के सिर पर टोपी। अलिफ बे ते से लेकर दीनी तालीम तक। यहां भी स्वामी जी का आगमन। छात्रों-शिक्षकों के साथ खैर-खबर की चर्चा और एक छोटी सी सभा। हम सब अल्लाह के बंदे हैं, से स्वामी जी अपनी बात शुरू करते हैं। अल्लाह ने हमें नेकी के लिए धरती पर भेजा है। मुहब्बत का पैगाम देने के लिए भेजा है, आदि-आदि। बात खत्म होती है और स्वामी जी अपनी कुटिया की ओर प्रस्थान कर जाते हैं। मैं भी पीछे-पीछे हो लेता हूं। साथ चल रही मंडली के एक सदस्य से कुछ सवाल कर बैठता हूं और जवाब मिलता है-स्वामी जी हर शुक्रवार की सुबह दोनों शिक्षण संस्थाओं में जाते हैं। वहां की व्यवस्था देखने। यह शिक्षण संस्थाएं स्वामी जी ने ही स्थापित की हैं और संचालन भी खुद ही संभालते हैं। चंदा मांग-मांग कर। गांव के बाहर नारियल के पेड़ों के बीच स्वामी जी की कुटिया। मां-काली का मंदिर और मौजूद कुछ भक्तवृंद। स्वामी जी चौकी पर बैठते हैं और मैं नीचे। स्वामी जी अखबार उठाते हैं। सुर्खियों पर नजर डालते हैं और बोल पड़ते हैं बाबा रे–रैली पर खर्चा दो सौ करोड़। इतने में तो शिक्षा से वंचित कम से कम दो-ढाई सौ गांवों में स्कूल खुल जाते। स्वामी जी फिर मेरी ओर मुखातिब होते हैं, क्यों पत्रकार साहब आप लोग लिखते क्यों नहीं। रैली में देश के विभिन्न हिस्सों से दस लाख लोग आए थे। कम से कम उनके तीन दिन खर्च हुए होंगे। यानी कम से कम तीस लाख कार्यदिवसों का नुकसान हुआ। इनमें ज्यादातर खेतीहर मजदूर थे। अगर पांच लाख खेतीहर मजदूर आए होंगे तो उनकी कम से कम पंद्रह करोड़ की दिहाड़ी तो मारी ही गई। अखबार वाले भी नअअअ, बस वहीं तक सीमित हैं—उन्होंने बताया कि, उन्होंने कहा कि–। एक बेबसी भरी मुस्कान को होंठो पर खींचने की कोशिश के साथ मैं जब तक कुछ कहता, मोबाइल रिंग के साथ जोर-जोर से थरथराया। मैं अपनी जेब टटोलने लगा हड़बड़ाकर और घुप्प अंधेरे में खुद को बिस्तर पर पाया। देखा मोबाइल का अलार्म बज रहा था। मैंने अपने भतीजे को आवाज लगाई, अरे वीर उठअ हो, तीन बज गइल। भोर में याद बढिया होखे ला। बायोलाजी रटे वाला विषय हअ। दरअसल वीर हाईस्कूल की परीक्षा दे रहा है। उसी को जगाने के लिए ही मैं तीन बजे का अलार्म लगा कर सोया था और सपने में रिपोर्टिंग कर अलार्म बजने के साथ वापस लौटा हूं। सुना है भोर का सपना सच होता है। मेरा सपना भी सच हो, ऐसे स्वामी जी का दर्शन लाभ मुझे जरूर मिले। वह हर गांव में मिलें।
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ऐसे भी मसीहा–
वो खुद को बताते हैं मसीहा मेरा और मेरे कत्ल का इरादा भी रखते है
कभी दिल, कभी दौलत और कभी जान, हर वक्त कुछ मांगते ही रहते हैं
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