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हमरा बलिया चाही

सर-ए-राह
सर-ए-राह
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जी हां, हमें तो बलिया चाहिए। एक संप्रभु बलिया राष्‍ट्र। क्‍योंकि पूरे हिंदुस्‍तान में बलिया सबसे पहले आजाद (20 अगस्‍त-1942, को कुछ दिनों के लिए ही सही)  हुआ था। हमारे लिए तो वेटिकन सिटी बलिया ही है। गंगा-सरयू का संगम है। भृगु ऋषि का वास है। राजा बलि का क्षेत्र  है। पूर्वांचल राज्‍य से बे‍हतर विकल्‍प तो यही होगा। हमारा पुराना नारा  भी रहा है-बलिया इज ए नेशन, नाट ए डिस्ट्रिक, चंद्रशेखर इस ए पार्टी, नाट ए लीडर। राजधानी बनारस हो या फिर गोरखपुर, हम बलिया वालों को सौ किलोमीटर से दूर का सफर करना ही होगा। वैसे भी पूर्वांचल राज्‍य की मांग किसी जिद्दी बबुआ को लोहे का झुनझुना थमाने जैसा होगा, वह झुनझुने से अपना सिर ही फोड़ेगा। एजेंडा हाईजैक करना तो सियासत की पुरानी बीमारी है। पूर्वांचल राज्‍य का मुद्दा भी हाईजैक हो रहा है। एक से दूसरे के हाथों में जा रहा है।  चंद्रशेखर जी इतने बड़े नेता हुए, शायद ही कभी पूर्वांचल राज्‍य की बात कही होगी। मुशीर अहमद लारी चंद्रशेखर जी के करीबी लोगों में रहे हैं। लारी साहब का उत्‍तराखंड के जसपुर में कार्बेट होटल है। एक वाकया तब का है जब मैं जागरण बरेली में था और अक्‍सर उत्‍तराखंड के कुमाऊं मंडल की यायावरी पर निकल जाया करता था। चंद्रशेखर जी एक बार कार्बेट होटल में रुके थे। खबर सुन मैं भी पहुंचा। लारी साहब की सिफारिश पर चंद्रशेखर जी से मिला। बलिया का होने की दुहाई देकर अलग साक्षात्‍कार का आश्‍वासन ले लिया (मैंने जिंदगी में किसी आबा-बाबा का आशीर्वाद नहीं लिया:चंद्रशेखर)। इसी दौरान प्रेस कांफ्रेंस हुई और मुद्दा बलिया के विकास का उठा। चंद्रशेखर जी तुनक गए (जैसा विष्‍णुजी सर ने लिखा है-चंद्रशेखर जी जब बोलते तो वो भाव चेहरे पर भी उतरते, मुख प्रदेश पर थोड़ा गुस्सापन झलकता, भौहें तनती और नथुने फड़फड़ाते)-मेरे पास पूरा देश है। सिर्फ बलिया नहीं। मुझे पूरे देश की सोचना है। रही बलिया के विकास की बात तो इनसे पूछ लीजिए ( मेरी ओर इशारा करते हुए) कि मैंने क्‍या किया है। लेकिन कुछ बड़े नेताओं के हालिया बयान तो ऐसे लग रहे हैं कि उन्‍होंने देश के बजाय सिर्फ हलकों के बारे में सोचना शुरू कर दिया है। कोई कहता है पूर्वांचल के लिए अपनी जान तक देने को तैयार हूं। लेकिन कोई यह नहीं बता रहा है कि पूर्वांचल की जरूरत क्‍यों आ रही है। क्‍या है पूर्वांचल में और क्‍या मिलेगा अलग राज्‍य बनाकर। उत्‍तराखंड राज्‍य के लिए वर्षों संघर्ष चला। लोगों ने गोली खाई। पिथौरागढ़ सरीखे जिलों में बीजिंग करीब है दिल्‍ली दूर के नारे लगे। सीमांत जनपदों के लोगों की दलील थी कि सूबे की राजधानी लखनऊ जाने में दो दिन लग जाते हैं। अब राज्‍य बन गया है। लेकिन पिथौरागढ़ के लोगों को अब भी राजधानी देहरादून जाने में दो दिन लग जाते हैं। अगर सिडकुल छोड़ दें तो विकास जैसा, जहां था वैसा-वहीं है। अल्‍मोड़ा शहर के चौघान पाटा में एक होटल हुआ करता था त्रिशूल। जिला पंचायत के गेस्‍ट हाउस के ठीक सामने। उत्‍तराखंड आंदोलन के दौरान शाम को अक्‍सर गेस्‍ट हाउस में अमर उजाला के चंद्रेक बिष्‍ट ( अब जागरण) से  मिलने चला जाया करता था। इसी दौरान होटल त्रिशूल के मालिक शाह जी से मुलाकात हुआ करती थी, वह मुझे बलियाटीजी कहा करते थे। दिनभर बीड़ी पीने के  साथ दो-दो अखबार पूरी तरह पढ़ जाया करते थे। अंडरलाइन कर बताते भी थे, यह गलत, वह सही। उन्‍हें बस छेड़ना होता था। शाहजी, ऐसे राज्‍य नहीं मिलेगा। संघर्ष करना होगा। बस वह शुरू हो जाया करते-राज्‍य नहीं देंगे तो गंगा को गोमुख से आगे नहीं जाने देंगे। जंगलों को आग लगा देंगे। राज्‍य बनेगा तो खर्चा कैसे चलेगा,  इसका जरिया गिनाते थे-जंगल है, पानी है, पर्यटन है। इसी से आमदनी इतनी होगी कि किसी से कुछ मांगने की जरूरत नहीं पड़ेगी। लेकिन पूर्वांचल मांगने वालों को यह समझ में नहीं आता कि न तो यहां झारखंड की तरह खनिज संपदा है, ना ही उत्‍तराखंड की तरह जंगल-पानी और पर्यटन। अगर है तो गंगा और सरयू की बाढ़ में तबाह खेत, गरीबी और बेरोजगारी। विकास पुरूष एनडी बाबा भी उत्‍तराखंड को उत्‍तर प्रदेश से अलग करने के खिलाफ थे। उनका कहना था कि उत्‍तराखंड राज्‍य के साथ रोजगार के अवसर सहित सबकुछ सीमति हो जाएगा, बनाना है कि आटोनामस स्‍टेट बना दो। पूर्वांचल मांगने वालों को यह बात शायद ही समझ में आए। पूर्वांचल का विकास चाहने वाली सरकारें पहले पूर्वांचल विकास विभाग क्‍यों नहीं बनवातीं,  जैसा पहले उत्‍तरांचल के लिए हुआ करता था-उत्‍तरांचल विकास विभाग। उसका एक मंत्री भी हुआ करता था। अगर पूर्वांचल के बाद भी विकास की स्थिति वही होने वाली है तो बेहतर होगा कि मुझे मेरा बलिया दे दो। क्‍योंकि बलिया इज नेशन—-

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